राजकीय महाविद्यालय कमांद, टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड

भौगोलिक एवं एतिहासिक परिचय

देवभूमि उत्तराखण्ड के जनपद टिहरी गढ़वाल के विकास खण्ड थौलधार के पट्टी उदयपुर, न्याय पंचायत बरवाल गाँव के अन्तर्गत स्थित अद्भुत विहंगम रमणिक स्थल कमान्द चक जो राजस्व रिकाॅर्ड के अनुसार कैंच्छू मध्य कमान्द चक के नाम से जाना जाता है। इसे थौलधार विकास खण्ड का केन्द्रीय स्थली भी कहा जाता है। यह भूमि भगवान नागराजा की देवस्थली नाम से विख्यात है।

भौगोलिक दृष्टि से कमान्द समुद्रतल से लगभग 1200 मी0 की ऊँचाई पर स्थित है। यहाँ की जलवायु समशीतोष्ण है। यह छोटा सा मैदानी भू-भाग है। इसके पूर्व में सांकरी, ल्वार्खा, पश्चिमी में कोटि, इच्छोनी, उत्तर में ढलान की ओर उडर नदी (राजस्व नाम) जिसे वर्तमान में कोटि गाड एवं स्यांसू गाड के नाम से जाना जाता है और इसके दक्षिण में कैंच्छू स्थित है। यह क्षेत्र लगभग 12 हेक्टेयर (600 नाली) में विस्तृत है। यहां से विकास खण्ड थौलधार का मुख्यालय एवं तहसील कण्डीसौड़ (छाम) लगभग 14 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। तहसील मुख्यालय के ठीक बगल भागीरथी नदी बहती थी जो अब टिहरी झील (टिहरी डैम) में तब्दील हो गई है। कमान्द के पूर्व में स्थित निकटवर्ती गाँव साँकरी, चोपड़ा, ल्वार्खा, मंजोली, रतवाड़ी, भल्डियाना, बैल, डांग, कुनेर, रत्नौ, बोर गाँव, उजाड़ गाँव तथा पश्चिम में इच्छोनी, कोटि, भैंसकोटि, तिखोन, लेंगर्थ, मंजकोट, नेरी, बरनू, झकोजी, सिमाली पातल और उत्तर में गुंसाई पट्टी, उडर नदी, भागीरथी नदी एवं विकासखण्ड एवं तहसील मुख्यालय कण्डीसौड़ (छाम) स्थित है। कमान्द के दक्षिण में 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित थौलधार के निकटवर्ती गांवों में बरवाल गाँव, बड़गांव, बरनौली, बमराड़ी, कोट एवं क्यूलागी है।

कमान्द का उद्भव-

प्रायः कमान्द चक कैंच्छू गांव का अभिन्न अंग रहा है। ऐसी मान्यता है कि यह भूमि भगवान नागराजा की थी वे यहां किसी को भी बसने एवं खेती बाड़ी नही करने देते थे। यदि इस भूमि पर कोई जबरदस्ती बसावट करना चाहता था तो उसे भगवान नागराजा का प्रकोप झेलना पड़ता था और वह इस भूमि को छोड़ने के लिए विवश हो जाता था। नागराजा की यह भूमि (600 नाली समतल भू-भाग) उनकी तपोस्थली मानी जाती है।

जहां कमान्द शब्द का अभिप्राय है इसके बारे में स्पष्ट एवं सटीक अर्थ बताना कठिन है परन्तु कतिपय पौराणिक कथनो तथा लिखित स्त्रोंतों के अनुसार समकालीन सयांणा (प्रधान, मालगुजार) बलदेव सिंह महर के वसीयतनामा से ज्ञात होता है कि टिहरी रियासत के वजीर श्री सकलानी ने भगवान नागराजा की इस भूमि पर बसने का प्रयत्न किया परन्तु उसे नागराजा के प्रकोप का सामना करना पड़ा यद्यपि वजीर ने भगवान नागराजा को प्रसन्न करने के लिए उनके मन्दिर में एक चाँदी का ढोल अर्पित किया परन्तु देवता प्रसन्न नही हुए। अन्ततः वजीर को इस भूमि का परित्याग करना पड़ा। वसीयतनामा के अनुसार एक गढ़वाली मुसलमान जो टिहरी रियासत में चूड़ियों का व्यापार करता था, उसने भी इस भूमि पर बसने का प्रयास किया। वह भी सपरिवार नष्ट हो गया। यह देखते हुए ग्रामीणों ने एक छोटा सा मण्डुला/मण्डप (मन्दिर) बनाया और निस्तर अन्तराल में नागराजा अराधना, पूजा-अर्चना करने लगे तथा मन्दिर स्थल एवं उसके आसपास की भूमि पर नग्न पैरों से आवागमन करते थे। इस भूमि पर लोगों का आना जाना बहुत कम था। गढ़वाली बोली में इस कमआन्दा (कम आना-जाना) कहा जाता था। जिसका परिवर्तित रूप कमान्द है। गांव के लोग इस भूमि का इस्तेमाल गौचर एवं अस्थायी कृषि के रूप में करते थे।

कमान्द क्षेत्र का विकास

टिहरी रियासत की राजशाही ने जब टिहरी में राजमाता स्कूल स्थापना की उसके कई वर्षों बाद 1945 में तत्कालीन टिहरी नरेश नरेन्द्र नरेन्द्र शाह ने कमान्द में एक प्राइमरी स्कूल एवं एक जूनियर हाईस्कूल की स्थापना की। वहीं जूनियर हाईस्कूल वर्तमान में अटल आदर्श इण्टरमीडिएट काॅलेज नाम से विख्यात है। इन स्कूलों के लिए तत्कालीन कैंच्छू के संयाणा (प्रधान) द्वारा कमान्द को गांव की संजायद भूमि में से 220 नाली भूमि दान कर दी, जिसमें से 50 नाली भूमि राजकीय इण्टर काॅलेज द्वारा राजकीय महाविद्यालय कमान्द को हस्तांतरित की गई।

टिहरी रियासत का स्वतंत्र भारत में विलय एवं विकास

01 अगस्त, 1949 को टिहरी रियासत का स्वतंत्र भारत में विलय हो गया तत्पश्चात् टिहरी उत्तरप्रदेश का एक भाग रहा जो वर्ष 2000 ई0 में पृथक उत्तराखण्ड होने तक रहा। उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा यहां छोटा स्वास्थ्य उपकेन्द्र, पशु चिकित्सालय, उपडाकघर, सस्त गल्ले की दुकान पंचायत भवन, सहकारी समिति, वन विभाग कार्यालय, ग्रीप कैम्प (डी0जी0बी0आर0) भल्डियाना। कमान्द ज्वारना मोटर मार्ग का निर्माण। क्रीड़ा मैदान प्राइवेट शिशु निकेतन जूनियर हाईस्कूल कमान्द, विद्युत लाइन, पेयजल लाइन एवं कच्ची सड़कों का निर्माण इत्यादि।

पृथम उत्तराखण्ड राज्य की स्थापना के बाद विकास

वर्ष 2005 में टिहरी डैम में टिहरी छाम चिन्यालीसौड़ मार्ग डूब क्षेत्र में जाने के पश्चात नया राष्ट्रीय राजमार्ग छभ्-94 चम्बा धरासू मोटर मार्ग के कमान्द से होकर गुजरने से यहां का तीव्र गति से विकास होने लगा। यहां दूर-दराज गांवों से लोग आकर बसने लगे। यहां पर स्थित छोटे व्यापारियों की दुकानों का विकास होने लगा। यात्रियों के ठहरने के लिए बड़े-बड़े होटल बनने लगे। 2008 में यह भू-भाग कैंच्छू पंचायत से पृथक होकर कमान्द मध्य चक नेर्सी फेडू सेरा मिलकर नई ग्राम पंचायत का गठन हुआ। अब कमान्द में आंगनबाड़ी, पंचायत भवन, बारात घर, पक्की सड़कें, नाली एवं पेयजल योजनाएं संचालित हो रही हैं।

2008 के पश्चात शिक्षा के क्षेत्र में भी अभूतपूर्ण प्रगति हुई है। सरस्वती विद्या मन्दिर, प्राइवेट स्कूल जैसे मेरीडियन जूनियर हाईस्कूल कमान्द, न्यू माॅर्डन स्कूल, वर्ष 2016 में राजकीय महाविद्यालय कमान्द का गठन हुआ जो नित प्रगति पथ पर अग्रसर है। यहां पर उद्यान/कृषि विभाग की शाखाएं स्थापित हो चुकी है। 2005 में उत्तराखण्ड ग्रामीण बैंक एक शाखा कमान्द स्थापित हो चुकी है। बड़ा डाकखाना भल्डियाना से कमान्द (2005) में शिफ्ट हो चुका है।

उत्तराखण्ड आंदोलनकारियों में कमान्द थौलधार ब्लाॅक के स्थानीय क्रान्तिकारियों में जोत सिंह बिष्ट (धारवाल गाँव) पूर्व ब्लाॅक प्रमुख, जगत सिंह राणा पूर्व प्रधान (इच्छोनी भैंसकोटी), पी0एन0 सकलानी पूर्व प्रधान पूर्व प्रधानाचार्य, पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य (भैंसकोटि), बृजमोहन सिलस्वाल, भगवान सिंह महर, मदन सिंह महर, पे्रम सिंह महर (कैंच्छू कमान्द), सरोप सिंह जड़धारी एडवोकेट (मंजोली), शंकर चन्द्र रमोला (चोपड़ा), रीता रावत इत्यादि।

उपरोक्त पृथक उत्तराखण्ड के लिए निर्भिकता से अथक प्रयत्न किया।

पर्यटन स्थल

कमान्द के निकटवर्ती पर्यटन स्थलों में टिहरी डैम, न्यू टिहरी, धनौल्टी ठांगधार, कद्दूखाल में स्थित सुरकण्डा मन्दिर (सिरकुट पर्वत पर) धार्मिक पर्यटन स्थलों में नागराजा मन्दिर में (कमान्द) में प्रत्येक वर्ष 17 अप्रैल (5 गते बैशाख) को भव्य एक दिवसीय मेला, छाम (कण्डीसौड़) बैशाखी दिन बिखौती का मेला, 19 अप्रैल (7 गते बैशाख) किमलूखाल में रथी देवता के मन्दिर में भव्य एवं विशाल एक दिवसीय मेला, 20 अप्रैल (8 गते बैशाख) चम्बा में स्वतंत्रता सेनानी गब्बर सिंह नेगी मेला, एवं उप्पूगढ़ (भैरों देवता मन्दिर) का कप्पू चैहान गढ़ाधिपति के नाम से प्रत्येक वर्ष 03 मई (21 गते बैशाख) को एक दिवसीय मेला लगता है।

प्रेषक
श्री मनोज कुमार
संविदा प्राध्यापक (इतिहास)
सन्दर्भः-
श्री भगवान सिंह महर-मुखातिव वर्जन